"जिंदगी मिलेगी न दुबारा " अहसास के साथ प्रोफेसर बाहरुल इस्लाम
नयी दिल्ली :(प्रज्ञा मेल संवाददाता ): दोस्तों,उपरोक्त कथन शेयर किये हमारे प्रज्ञा मेल के राष्ट्रीय सलाहकार रत्नज्योति दत्ता के साथ प्रज्ञा मेल के ही शुभचिंतक और आईआईएम,काशीपुर,उत्तराखंड के प्रोफेसर बाहरुल इस्लाम ने स्कूल ऑफ़ लंदन इकोनॉमिक्स में व्याख्यान देने के बाद स्वदेश लौटते हुए। असम से ताल्लुक रखने वाले प्रोफेसर बाहरुल इस्लाम एक ग्रीष्म वेकेशन पर व्याख्यान देकर लौट रहे हैं । फिलहाल एस जे सिम्फोनी पानी जहाज के जरिए स्वीडेन से कल शाम चार बजे रवाना होकर आज शाम को फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी पहुंचेंगे। संयोग से आज ही उनका जन्मदिन है । इसी यात्रा के दौरान उन्होंने भाव-विभोर होकर कहा कि जिंदगी न मिलेगी दुबारा। ऐसे किसी कवि ने कहा भी है कि "सैर कर दुनिया कि गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ ? जिंदगी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ ? इस संदर्भ में बांग्ला में कहा गया है कि पोड़ो सोना कोर्बे,तो गाड़ी घोडा चोड़बे ! सचमुच,आज जब उनका जन्मदिन भी है तो यह बात कितनी सार्थक लगती है। प्रोफेसर बाहरुल, डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर तो हैं ही और दो विषयों में भी डॉक्टरेट हैं। इसके अलावा इनके पिता प्रोफेसर फ़क़रुल इस्लाम भी जानेमाने शिक्षाविद है ओर असम सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। पाठकों को बता दें कि प्रोफेसर इस्लाम, हमारे प्रज्ञा मेल समाचार पत्र द्वारा आयोजित प्रथम बहुभाषी राष्ट्रीय कवि सम्मलेन के विशेष अतिथि भी रह चुके हैं। उनको प्रज्ञा मेल परिवार कि ओर से जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनायें ! प्रज्ञा मेल उनकी सुखद यात्रा और उन्नति की कामना करते हैं कि वह स्कूल ऑफ़ लन्दन इकोनॉमिक्स में देश का नाम और उज्जवल करेंगे।